पाप-पुण्य के लेखा-जोखा में रत उलझ जाते हैं - दूसरों के हिसाब-किताब में और इसी बीच खुद बदल जाते हैं - लाश में बगैर किसी हिसाब-किताब के
हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ